Saturday, 27 September 2008

संघर्ष

बिना किसी दोष के,
मिलती हैं क्यों सजाएं?
जीवित रहकर भी मरनेवाले,
किसी से अब क्या बताएँ?
हर एक पल रह-रह कर,
जाने क्यों ठोकरें लगाता है?
गिरना फ़िर उठना,उठकर फ़िर गिरना,
जाने निरंतर हमें क्या बताता है?
संघर्ष की अनवरत यह गति,
कोई बताये कबतक चलेगी?
यह द्वंद्व रक्त प्रवाह संग,
क्या अन्तिम साँस तक चलेगी?
अब जीतकर या हारकर,
जीना होगा क्यों रार कर?
संघर्ष से हर दीवार को पार कर,
चढती है लहरे चट्टानें ज्यों पारकर।

1 comment:

प्रदीप मानोरिया said...

संघर्ष की अनवरत यह गति,
कोई बताये कबतक चलेगी?
सुंदर कविता आपके मेरे ब्लॉग पर पधार कर उत्साह वर्धन के लिए धन्यबाद. पुन: नई रचना ब्लॉग पर हाज़िर आपके मार्ग दर्शन के लिए कृपया पधारे और मार्गदर्शन दें